Saturday, August 27, 2011

अन्ना साहेब की जय हो

आखिर जनता की आवाज सुन ली गयी। गांधीजी का सपना था भारत का निर्माण संसद में बैठकर नहीं लोगों के बीच में कम करके होगा। अन्ना साहेब का जीवन दर्शन गांधीजी के उसी सिद्धांत को परिलक्षित करता हैं। वर्षों पहले गांधीजी के सिद्धांत पर चलने के लिए जयप्रकाश नारायण जी राजनीति से सन्यास लिया था और गौवों में मुसहरों की बस्ती में रहते हुए ग्राम सुधर का काम करते थे। उस समय भी संसद के तानाशाही को चुनौति भी एक लोक नेता ने ही दिया था।
जो भी युवा समाज निर्माण के कार्यों में लगना चाहते हैं, उनके लिए ये घटनाएँ निश्चितरूपैन प्रेरणादायी बलदायी रहेगा।
अन्ना की जीत, भारत की जीत हैं। आम जनता की जीत हैं। सबकी जीत हैं। संसद में बैठे लोगों की भी जीत हैं। संसद में बैठे लोग जनता की सेवा को ही अपना लक्ष्य साधे। इसी में देश की तरक्की हैं और भारत के चिरंतन संस्कृति की जीवन्तता बनी रहेगी।
जश्न का माहौल है। अपने तमाम शहीदों को नमन करें और राष्ट्र के विकास में प्राणपन से लगने के लिए कृत संकल्प हो।

जयहिंद


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