Saturday, August 27, 2011

अन्ना का मंच कोई नाट्य मंच नहीं

ऐसे आन्दोलनकारी माहौल में जब लोगों में देशभक्ति उमड़ रही हैं, इस तरह के बातों पे ध्यान खींचना ठीक न होगा। मगर अभिनेता 'ओमपुरी' के भाषण में जो शब्द प्रयोग किया वह अन्दर तक झकझोर दिया हैं ।
संसद में बैठे आधे नेता 'गवाँर' और 'अनपढ़' हैं, इसीलिए नेता लोग देश को बेच कर खा रहे हैं। 'गवाँर' व 'अनपढ़', ये दोनों शब्दों के इस तरह से प्रयोग भारत में रहने वाले ग्रामीण भाईओं व गौवों व कस्बों में रहने वाले लाखों लोग जो आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारन आधुनिक शिक्षा लेने में असमर्थ रहे, की तौहीन हैं। उनके प्रति इनलोगों का नजरिया बहुत बेकार हैं और शायद इन्हें देश के लोगों व संसद में बैठे लोगों के बारे में कुछ भी पता नहीं हैं।
आज देश में जितना संस्कार गॉव के लोगों में हैं (गाँधीजी ने भी अपने ज़माने में यही बात लिखा था), आज मानवीय मूल्यों के प्रति जितनी श्रद्धा मूर्खों में हैं, उतना आप शहरों में या पढ़े लिखे वर्ग में यदा कदा ही देख पाएंगे। कलमाड़ी साहब मुर्ख हैं? राजा साहब मुर्ख हैं? सभी नेताओं के बारे में नहीं पता लेकिन शीर्ष के नेताओं में कितने मुर्ख हैं?
आज के भ्रष्ट नेता व अधिकारी क्या मुर्ख हैं? भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान जो देश का सर्वोच्च शिक्षा संस्थान मन जाता हैं और हैं भी के कितने छात्रों का जीवन समाज के सामान्य लोगों के द्वारा अनुकरणीय हैं? कितने पढ़े लिखे छात्र खेती बरी कर सकते हैं या करना चाहते हैं, जबकि भोजन सबको चाहिए और इसलिए किसान के बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज सामान्य जनों में सत्य, ईमानदारी आदि मूल्यों के प्रति आस्था किन लोगों के कारण कम हुईं हैं ? क्या पढ़ा लिखा वर्ग अपने आप समाज की बुराइयों जैसे जाति-प्रथा, दहेज़ इत्यादि से अपने को अलग कर पाया हैं?
मुझे लगता हैं वास्तव में आज की शिक्षा-प्रणाली लोगों को शिक्षित बनाने के बजाय मुर्ख ही बना रही हैं। अतः इस प्रणाली में आमूल-चुल परिवर्तन की आवश्यकता हैं।
आज देश के सबसे बड़े नेता, हम उन्हें तीसरा गाँधी (जयप्रकाश नारायण दुसरे गाँधी मने गए थे) भी बोल सकते हैं, उनका पढाई में क्या योग्यता हैं? क्या वे गॉव से नहीं हैं?
नेताओं का चयन समाज के द्वारा होना चाहिए। उनकी शिक्षा समाज में सामाजिक कार्यों के द्वारा ही हो सकती हैं। गरीबों का दर्द व उनके मनोभाव उनके साथ एक लम्बे समय तक रहने पर ही हो सकती हैं, किसी किताब को पढ़ के नहीं। हा ये लोगो का कर्त्तव्य होना चाहिए की वे किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व व उसके आम समाज के सान्निध्य को देखते हुए अपना मत दे न कि किसी पार्टी के नाम पर। राहुल गाँधी का प्रधान मंत्री बनने कि चर्चा भी इस देश में प्रजातंत्र का गला घोंटना ही हैं।
मंच का उपयोग समाज जिन प्रश्नों से जूझ रहा, संसदीय प्रणाली के किन कमियों के कारण वे समस्याएँ हैं और उन्हें किस तरह से दूर किया जाय, इसी पर विचार किया जाय। इसमें भारतीय जनता के चरित्र का ख्याल भी हों। भीड़ मेंटलिटी को कैसे श्थायित्व प्रदान किया जाय उसपे भी विचार हों। इसके लिए अन्ना-दल को देश के सुदूर प्रदेशों में कम कर रहें लोगो को मंच पे स्थान देना चाहिए, वे गरीब लोगों कि समस्याओं का वर्णन मार्मिक ढंग से कर सकेंगे और आन्दोलन को एक सुनियोजित स्वरुप देंगे। यह आन्दोलन कानून के साथ साथ लोगों को एक नया जीवन दर्शन दे इसके लिए प्रयास करना चाहिए। आम चुनाव कि तरह आम पार्टियों कि तरह अभिनेताओं का भाषण नहीं चाहिए। आज तो देशभक्ति कि ऐसी धूम मची हैं कि नेता, अभिनेता, क्रिक्केटर सभी फीके पद गया हैं, आज केवल अन्ना का त्यागपूर्ण जीवन ही लोगों को उद्वेलित कर रहा हैं। समाज में त्याग कर रहे लोगों के लिए यह निश्चित ही सम्मानीय विषय हैं।







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